SHE:
6 घंटों में सुबह होगी
दिन भर फिर तुम्हे वही एहसास होगा
जो रोज़ होता है
और फिर तुम रात में सो जाओगे
कि कल शायद कुछ अच्छा होगा
HE:
पर अभी रात है
अँधेरा है
डर, शंका, सब है
दूर-दूर तक नींद का कोई निशान नहीं
न सुबह की उम्मीद पर भरोसा ही
SHE:
रात है
मीलों दूर तारें हैं
काफी पुराने हैं
पर फिर भी साथ हैं
सुबह को छोड़ो
जो है अभी
उसमे अपनी जगह ढूंढो
HE:
पर क्या जो तारे साथ हैं वो खुश हैं?
या क्या पता किसी और के लिए जगमगाना चाहते थे ?
जिसके लिए चमक रहे थे उसे समझा न पाए
या कुछ वक़्त के लिए मद्धम हुए तो
फिर जल न पाए
SHE:
तारे तो आगे कब के निकल गए
किसी अतीत की वो परछाई है
वो टिमटिमायें जब हम देखें उन्हें
आँखें कर दो बंद
न रहे तारे न उनकी रोशनी
HE:
तारों की फ़िक्र नहीं है
न रात की
न जहान की
पर एक जिसको सबसे ज़्यादा ख़ुश रखने की चाहत है
वो मेरी वजह से उदास है
ये कैसा एहसास है?
SHE:
उदासी
अजीब सी होती है उदासी
कहते हैं वो की तुम्हारी वजह से उदास हैं
जानते हैं वे भी कि उदासी बिन मोहब्बत न आए
तो जहाँ तुम हो परेशान और वो उदास
वहाँ दिखे प्यार का एहसास
HE:
पर जब आप जानते हैं
कि वजह आप हैं
और वो बोलते हैं की ऐसा नहीं है
तब चीज़ें थोड़ी कठिन सी लगती हैं
और चुप्पी हर एहसास की आवाज़ को
दबा कर रख सकती है
SHE:
ये जान लो कि कभी न कभी उदासी की वजह आप बनोगे
किसी एक के नहीं काफियों के
पर अगर कोई कहे कि आप नहीं वह वजह
तो जानते हुए भी अनजाने बनने की आदत डाल लो
कभी कभी रिश्तों में यही सुलह लाती है
बस अंजान हो कर अपनी गलती भूल न जाना
गलती दोहराने का न होता कोई बहाना
और रही बात चुप्पी की
चुप्पी ज़िन्दा होने का एहसास दिलाती है
और वो एहसास अपने जीने की वजह याद दिलाती है
HE:
धीरे धीरे सब कुछ शायद सही हो जाएगा
पर उससे पहले जीवन खत्म ना हो
ये उम्मीद रख कर
आगे चलना है
रास्ते कठिन हैं
पर नहीं थकना है
SHE:
कभी कभी वक़्त को भी वक़्त देने की ज़रूरत होती है
कभी खुद वक़्त के आगे निकलने की ज़रूरत होती है
हम बस यहाँ दो लफ्ज़ लिखने की कोशिश कर रहे
ये सफर तुम्हारा है
तुम चुनो वक़्त के साथ चलना चाहते हो
या एक बार ही सही, दौड़ लगाना चाहते हो ?
HE:
कुछ सवाल हैं जिनके कोई जवाब नहीं हैं ...
SHE:
कुछ जवाब हैं जिनका अभी वक़्त नहीं है ...
HE:
वक़्त फिसलता जाता है ...
SHE:
वक़्त कहीं नहीं जाता
जो पल है वो है
जो नहीं वो न था
इंतज़ार हमे हैं
इलज़ाम वक़्त पे है
HE:
तो फिर क्यों वक़्त के साथ चीज़ें भी बदल जाती हैं?
SHE:
क्यों कि हम हैं
हम कुछ फैसले लेते हैं
जान के भी
अनजाने में यूँ ही
हम बदलाव लाते हैं
वक़्त बस दिलासा देता है
HE:
इंतेहां है , खुद पे टिके रहने की
सब से लड़ लेने की
उस एक ज़िद्द के लिए
जिसे हम ज़िन्दगी कहते हैं
ये वक़्त, इंतेहां है
SHE:
वक़्त घड़ी की टिक टिक है
या एक इंतेहां, शायद कोई बहाना
कह लो जो तुम चाहो, पर
वक़्त को घड़ी में बांधा इनसां ने
फिर कहता वो कि वक़्त के हम कठपुतली हैं
HE:
हाँ, ये सच है कि वक़्त को मायने हमने दिए
वक़्त सिर्फ घड़ी टिक टिक है
एक कठपुतली जिसके हम ग़ुलाम बनते गए
SHE:
रात के ये लम्हे
ये सोच कर सो जाओ कि
चीज़ें कल बेहतर होंगी
जो आज नहीं अपने पास
कल साथ होगी
वक़्त को यूँ ही नहीं कैद किया हमने
एक पल ठहर कर वक़्त को अपनी चाल चलने दो
सुबह फिर एक कोशिश होगी
अपनी चाह को आज ख्वाब बुनने दो।
HE:
बेफिक्री का ये समा न होता
न होती आँखें हल्की
जो तुम न होते
न पता कल जब जब तुम्हे नींद न आए
तो हम ये कर पाएँ या नहीं
पर फिर उस रात आँखें हमारी भी भरी रहेंगी
SHE:
बुध्दू हो तुम जो ये कहते हो
कई रात हमने यूँ ही बिताए हैं
जब जब नींद ने साथ छोड़ा
हर बार हमने साथ निभाया है ।
Read Part 1 here.
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